त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मात्र 60 हजार रुपये में साल भर का घर-खर्च चलाते हैं।
मुख्यमंत्री माणिक सरकार पिछले साल विधानसभा चुनाव में अपने नामांकन के बाद अचानक देश भर के अखबारों में चर्चा में आ गए थे। नामांकन के दौरान उन्होंने अपनी संपत्ति का जो हलफनामा दाखिल किया था, उसे एक राष्ट्रीय न्यूज एजेंसी ने फ्लेश कर दिया था। जो शख्स 1998 से लगातार मुख्यमंत्री हो, उसकी निजी चल-अचल संपत्ति अढ़ाई लाख रुपए से भी कम हो, यह बात सियासत के भ्रष्ट कारनामों में साझीदार बने मीडिया के लोगों के लिए भी हैरत की बात थी।
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CHIEF MINISTER TRIPURA |
लॉन्ड्री के लिए भी सरकारी धोबी नहीं
मुख्यमंत्री के कपड़े धोने के लिए सरकारी धोबी की व्यवस्था नहीं है। माणिक सरकार ने मुख्यमंत्री आवास में आते ही अपनी पत्नी को सुझाव दिया था कि रहने के कमरे का किराया, टेलिफोन, बिजली आदि पर हमारा कोई पैसा खर्च नहीं होगा तो तुम्हें अपने वेतन से योगदान कर इस सरकारी खर्च को कुछ कम करना चाहिए। और रसोई गैस सिलेंडर, लॉन्ड्री (सरकारी आवास के परदे व दूसरे कपड़ों की धुलाई) व दूसरे कई खर्च वह अपने वेतन से वहन करने लगीं, अब वह यह खर्च अपनी पेंशन से उठाती हैं।
पांचाली ने बताया कि एक मुख्यमंत्री की पत्नी का रिक्शे से या पैदल बाजार निकल जाने, खुद सब्जी वगैरह खरीदने जैसी बातें हिंदी अखबारों में भी छपी हैं। यहां के लोगों को तो आप दोनों की जीवन-शैली अब इतना हैरान नहीं करती पर बाहर के लोगों में ऐसी खबरें हैरानी पैदा करती हैं।
उन्हें साधारण जीवन और ईमानदारी में आनंद है।
पांचाली ने कहा "मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से मेरे पति पर कोई उंगली उठे"।
उन्हें साधारण जीवन और ईमानदारी में आनंद है।
पांचाली ने कहा "मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से मेरे पति पर कोई उंगली उठे"।
मेरा दफ्तर पास ही था सो पैदल जाती रही, कभी जल्दी हुई तो रिक्शा ले लिया। सचिव पद पर पहुंचने पर जो सरकारी गाड़ी मिली, उसे दूर-दराज के इलाकों के सरकारी दौरों में तो इस्तेमाल किया पर दफ्तर जाने-आने के लिए नहीं। सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद अब सीआईटीयू में महिलाओं के बीच काम करते हुए बाहर रुकना पड़ता है। आशा वर्कर्स के साथ सोती हूं तो उन्हें यह देखकर अच्छा लगता है कि सीएम की पत्नी उनकी तरह ही रहती है। एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता के लिए नैतिकता बड़ा मूल्य है और एक नेता के लिए तो और भी ज्यादा। मात्र 10 प्रतिशत लोगों को फायदा पहुंचाने वाली नई आर्थिक नीतियों और उनसे पैदा हो रहे लालच व भ्रष्टाचार से लड़ाई के लिए वैचारिक प्रतिबद्धता और उससे मिलने वाली नैतिक शक्ति सबसे जरूरी चीजें हैं।
दरअसल, माणिक सरकार पिछले साल विधानसभा चुनाव में अपने नामांकन के बाद अचानक देश भर के अखबारों में चर्चा में आ गए थे। नामांकन के दौरान उन्होंने अपनी संपत्ति का जो हलफनामा दाखिल किया था, उसे एक राष्ट्रीय न्यूज एजेंसी ने फ्लैश कर दिया था। जो शख्स 1998 से लगातार मुख्यमंत्री हो, उसकी निजी चल-अचल संपत्ति ढाई लाख रुपए से भी कम हो, यह बात सियासत के भ्रष्ट कारनामों में साझीदार बने मीडिया के लोगों के लिए भी हैरत की बात थी। करीब ढाई लाख रुपए की इस संपत्ति में उनकी मां अंजलि सरकार से उन्हें मिले एक टिन शेड के घर की करीब 2 लाख 22 हजार रुपए कीमत भी शामिल है। हालांकि, यह मकान भी वह परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए छोड़ चुके हैं। इस दंपत्ति के पास न अपना घर है, न कार। कम्युनिस्ट नेताओं को लेकर अक्सर उपेक्षा या दुष्प्रचार करने वाले अखबारों ने ‘देश का सबसे गरीब मुख्यमंत्री’ शीर्षक से उनकी संपत्ति का ब्यौरा प्रकाशित किया। किसी मुख्यमंत्री का वेतन महज 9,200 रुपए मासिक (शायद देश में किसी मुख्यमंत्री का सबसे कम वेतन) हो, जिसे वह अपनी पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा) को दे देता हो और पार्टी उसे पांच हजार रुपए महीना गुजारा भत्ता देती हो, उसका अपना बैंक बैलेंस 10 हजार रुपए से भी कम हो और उसे लगता हो कि उसकी पत्नी की पेंशन और फंड आदि की जमाराशि उसके भविष्य के लिए पर्याप्त से अधिक ही होगी, तो त्रिपुरा से बाहर की जनता का चकित होना स्वाभाविक ही है।
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